
कोरोना वाइरस के कारण सम्पूर्ण विश्व में भयानक मंदी की स्तिथि उत्पन्न हो रही है । इस मंदी का प्रभाव भारत जैसे विकासशील देशों पर भी हो रहा है और यह आगे विकराल रूप धारण कर सकती है। इसी संदर्भ में भारतीय रुपए पर पड़ने वाले प्रभाव को भी समझना चाहिए।
Impact of the Pandemic/महामारी का प्रभाव-
मार्च २०२० में वैश्विक स्तर पर पोर्ट्फ़ोलीओ निवेशकों ने क़रीब 80 बिलियन डॉलर का निवेश बाज़ार से बाहर निकाला है।
भारत से इन निवेशकों ने क़रीब 15 बिलियन डॉलर का निवेश बाज़ार से बाहर निकाला। अर्थात् इन निवेशकों ने अपने शेयर बेचें और पैसा बाज़ार से निकाल लिया।इसका प्रभाव शेयर बाज़ार पर भी देखा जा रहा है। भारत के नैशनल स्टॉक एवम् मुंबई स्टॉक इक्स्चेंज दोनो में ही क़रीब 25-30% की गिरावट हुई है।

Status of Indian Rupee/ भारतीय रुपए की स्तिथि—
वैश्विक स्तर पर अस्थिरता के बावजूद रुपया क़रीब-क़रीब स्थिर ही रहा है ।इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि RBI ने समय समय पर इसे बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मार्च के अन्तिम सप्ताह में क़रीब 12 बिलियन डॉलर कम हुआ और इसका मुख्य कारण यह है कि पॉर्ट्फ़ोलीओ निवेशकों ने तेज़ी से अपना पैसा बाज़ार से निकाल और अपना हिस्सा बेचा।इससे भी रुपए में गिरावट आई।
What is The Concern/चिंता क्या है?—
सबसे बड़ी चिंता दीर्घकालिक रूप से है। RBI ने रुपये की स्थिरता के लिए जो प्रयास किए है वे वास्तव में RBI की उप गवर्नर उषा थोरोट की अध्यक्षता में गठित taskforce की शिफ़रिशों के अनुकूल नही है।इस Taskforce ने शिफ़ारिश की थी की RBI रुपए की स्थिरता के लिए जो भी प्रयास करें वे Offshore तथा Onshore मार्केट में एकीकृत रूप में होने चाहिए जबकि RBI ने इस नियम का पालन पूर्ण रूप में नही किया।और इस बात पर ही अधिक बल दिया कि रुपया Offshore मार्केट में अधिक स्थिर बना रहे। जबकि निवेशकों का विश्वास इस बात पर निर्भर करता है की RBI की नीति में संतुलन है अथवा नही और हस्तक्षेप एक सीमा तक ही हो।

अब आगे क्या?—
जब COVID-19 का प्रभाव कम या समाप्त होगा तो RBI को इस प्रकार की रणनीति अपनानी होगी जिसके माध्यम से Offshore तथा Onshore दोनों प्रकार के मार्केट को टार्गेट किया जा सके।
जैसे ही कोरोना का प्रभाव कम होगा विश्व के सभी बड़े देशों के केंद्रीय बैंक तरलता में वृद्धि के उद्देश्य से बाज़ार में अधिक से अधिक मुद्रा डालेंगे ऐसी स्थिति में निवेश आकर्षित करना और भी अधिक मुश्किल होगा जिससे रुपये और डॉलर के मूल्य संतुलन पर भी प्रभाव पड़ेगा।अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व ने यह कार्य आरम्भ भी कर दिया है।
RBI को Onshore मार्केट में भी तरलता बनाए रखने हेतु प्रयास करना होगा जिससे स्थानीय बाज़ार में माँग में वृद्धि हो तथा निवेशकों का विश्वास बढ़ाया जा सके।
इन दोनो ही कार्यों के दौरान RBI को यह भी ध्यान रखना होगा कि रुपये की स्थिरता के लिए किए गए प्रयास कही वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिस्पर्धा पर तो नकारात्मक प्रभाव नही नही पढ़ रहा।क्योंकि वर्तमान समय में निवेशक उन अर्थव्यवस्था की और अधिक आकर्षित होते है जो बाज़ार के नियमों से संचालित होती हो तथा जिनमें सरकार का हस्तक्षेप कम से कम हो।
